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Showing posts from November, 2020

रहो संग किसानों के यही है मेरे दिल का नारा

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  तपते हैं धुप में तपते ज़मीन को जोतते हैं  मेहनत जीजान से करके सोना उगलते हैं  धुप-छांव हो बरसात फसल प्यार से उगाते हैं  अपना पेट भरने से पेहले औरों का पेट भरते हैं  सदियों से तो यही है पेशा किसान का जो हैं  बैल-ट्रेक्टर या खुद ही हल-जोतना बीज बोना काम लगन से करना अपने देश का पेट है भरना  मिटटी से नाता रखने वाले ज़मीन से जुड़े हुए हैं  इसीलिए हर किसी का पेट भरने के बाद भी   किसान खुद भूखा है अनाज से अपने हक्क से  सरकारें आयीं और गए भी हैं गद्दी से कई यूँ भी  देशवासियों की विकास और तरक्की के बहाने   ये वही देश हैं जहाँ नारे लगे थे स्वतंत्र भारत में  'जय जवान जय किसान' वही आज लड़ रहे हैं  कब किसान होगा आज़ाद इन सभी बंधनों से  जहाँ उसे उसका हक़ मिलेगा वो जियेगा चेन से  एक निवाला जब रोटी का डालो अपने मुँह में  ज़रूर याद करना जिसने काटे फसल धान्य के  देश का किसान जब भूखा होगा दुखी होगा ऐसे  तो उस अन्न का क्या हर्ष होगा जो खाएं गर्व से  विभिन्नता में एकता इसी में है सबकी सद्भावना  रहो संग...

दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली रे !

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कोरोना के दिन,महीने निकल गए  इनके साथ त्यौहार जन्मदिन भी  संभलते बचते-बचाते निकल गए  सुना छह दिनों की दिवाली अब के  एक-दो दिन ही मनाई गयी इस साल  न आना और न ही किसी को बुलाना  सभी अपने-अपने संतुष्टि के अनुसार  मना रहे होली और ये आयी दिवाली  सोशल मीडिया न होता तो त्यौहार भी  इस कोरोना की तरह घरों में दब जाती  एक बात का पता चल गया इस बार  कुछ सजने-संवरने के बहाने ही सही  घर की सफाई हुई और चार लालटेन  दीयों के कतार रंगोलियों में सजने लगे  मिठाइयां घर की न सही हलवाई से ही  घरों में रोशन हुए दिवाली के संस्कार यूँही  पटाखों की बात अलग है पर्यावरण को सोच  समय निर्धारित ही सही मगर फुलझड़ियां  खुशिओं के जलाये तो होंगे न इस बार भी? दीप जलाओ -दीप जलाओ आज दिवाली रे  उन विषादों से घिरे चंद यादें दीप संग जलाये   नए वस्त्र, नए कानों में कुण्डल मगर वो पल कहाँ  जब मिट्टी के किले बनाकर राजा, मंत्री घोडा सजाते  रंगोली से सजी गद्दी पर महाराज शिवाजी को बैठाते दिवाली तो हम तब मनाते अब सिर्फ रस्म हैं ...

मैं खुश हूँ बहुत मेरे आंसुओं पर मत जाना

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मैं खुश हूँ बहुत मेरे आंसुओं पर मत जाना  ख़ुशी के आंसुओं की बात ही निराली है  तब निकलते हैं जब ख़ुशी खुद बेकाबू है  नाचूँ  झुमु गाऊं ख़ुशी से कुदुं क्या करूँ  आज प्रातःकाल शुभकामनाओं के साथ  डिस्काउंट में ख़ुशी का बक्सा मिल गया  पिछले कुछ दिनों से  चिंता सता रही थी  कहीं फिर से जनतंत्र की न हो जाए हार  आखिर मेरे जन्मदिन का ये उपहार मिला  मानवता का प्रतिक सम्मानित हुआ आज   ये जन्मदिन सदियों तक रहेगा मुझे याद  ओबामा के बाद आये बिडेन-हारिस सत्ता में  इतिहास रचा गया हर बार और मैं खुश हूँ  मैं इस ऐतिहासिक क्षणों का हिस्सा रही  दोस्तों की दुआएं मोहब्बत और क्या चाइये  आज का दिन धन्य है कई मायनों से  मैं खुश हूँ बहुत मेरे आंसुओं पर मत जाना  ~ फ़िज़ा  

शुक्रगुज़ार हूँ मैं इस ज़िन्दगी का !

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  महीना कब शुरू हुआ कब ख़त्म  सब कुछ तो उन्नीस- बीस है यहाँ  कोविड ने इस तरह गले लगाया के  किसी से गले मिलने लायक न रखा  और इस तरह दिन-हफ्ते-महीने गुज़रे  पता चला कल हमारा जन्मदिन है  कहाँ साल के शुरुवात में थे अभी  और साल ही ख़त्म होने को चला है   यादों के कारवां में सफर करते हुए  कई मुकाम आये और गुज़र भी गए  बस विनीत और नम्रता ही साथ रहे  इन सालों में एक ही सीखा ख़ुशी  अपने अंदर ही बसती है ढूंढो नहीं  और चीज़ें कम लगती हैं हमें जब   प्रकृति बाहें फैलाकर देतीं है सब  खुश हूँ जहाँ भी हूँ मैं आज दिल से  ज़िंदादिली से जिया ज़िन्दगी को  अब सिर्फ सविनय है साथ मेरे  शुक्रगुज़ार हूँ मैं इस ज़िन्दगी का ! ~ फ़िज़ा