आज़ादी की मुबारकबाद !
स्वतंत्रता के ७३ वर्षों के बावजूद मन अशांत है क्यों लगता है के पहले से भी अधिक बंधी हैं विचारों से मन-मस्तिष्क से अभिप्राय से बंधे हैं जब लड़े थे आज़ादी के लिए एक जुट होकर हर किसी के लिए चाहते थे मिले आज़ादी उन्हें न सही उनकी आनेवाली नस्ल को सही एक इंसानियत का जस्बा था जो हमें दे गयी स्वंत्रता अंग्रेज़ों से उनके अत्याचारों से मुक्ति मगर फिर आपस में ही लड़ते रहे आजीवन स्वार्थ और खोखली राजनीती और गुंडागर्दी कैसे कहें स्वंतंत्रादिवस की शुभकामनाएं जब आज भी हम आधीन हैं ईर्षा और नफरत के देश रह गया पीछे मगर सब हैं जीतने आगे धीरे-धीरे आनेवाला कल भी भूल जायेगा आज़ादी का संघर्ष और मूल्य शहीदों का एक ख्वाब तब था और एक अब भी है चाहे पाक हो या हिंदुस्तान दोनों को है आज़ादी की मुबारकबाद ! ~ फ़िज़ा