क्यों जुड़ जाते हैं हम ...!
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कोरोना के दिन हैं और उस पर आज शुक्रवार की शाम, इरफ़ान खान की फिल्म "क़रीब क़रीब सिंगल" देखी, जो फिल्म पहली बार में हंसी-मज़ाक ले आयी थी वही दोबारा देखने पर हंसी तो ले आयी मगर दो आंसूं भी.. ! इस ग़म को भगाने के लिए दिल बेचारा - सुशांत सींग राजपूत की फिल्म भी देख ली ! अलविदा बहुत ही मुश्किल होता है, मगर लिखना आसान !!!! ये कविता उन सभी के नाम जो अपनों को खोकर अलविदा नहीं कह पाते !!! क्यों जुड़ जाते हैं हम जाने-अनजाने लोगों से न कोई रिश्ता न दोस्ती फिर भी घर कर लेते हैं दिल में जैसे कोई अपने ख़ुशी देते हैं जैसे सपने चंद फिल्में ही देखीं थीं बस दिल से अपना लिया कहानी को सच समझ कर उनके साथ हंस-रो लिया हकीकत की ज़िन्दगी सब अलग अपनी-अपनी होती हैं आज उनकी फिल्मों को देख उनके अपनों को सोच कर उनकी ज़िन्दगी के खालीपन और उनके बीते गुज़रे कल की यादों में रहकर जीने वाले सोचकर बहुत रो दिए! ~ फ़िज़ा