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अलविदा कहना अब इस वक़्त ठीक नहीं

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ज़िन्दगी किसी की मोहताज़ नहीं फिर भी इंसान शुक्रगुज़ार नहीं जीना गर तुम्हारी फितरत में नहीं किसी और की ज़िन्दगी बर्बाद भी नहीं खुदगर्ज़ और खुदफहमी में रहना नहीं साथ रहनेवालों को बेचैन, ज़िन्दगी नहीं बहुत हुआ नेकी करनी सोचा अभी नहीं वो वक्त गुज़रकर जाना यहाँ से दूर नहीं अलविदा कहना अब इस वक़्त ठीक नहीं उस दिन की आस ज़रूर है जब हम नहीं ! ~ फ़िज़ा

ये ज़िन्दगी की भी क्या अजीब किताब है...!

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ये ज़िन्दगी की भी क्या अजीब किताब है हर साफा किसी न किसी से जूझता हुआ ! कोई इश्क़ में डूबा हुआ तो कोई मारा हुआ कभी इश्क़ से मांगता हुआ तो लड़ता हुआ ! जीने के लिए लड़ता हुआ तो ललचाता हुआ जीने के वजह से मरता हुआ तो मारता हुआ ! कोई जीने के लिए बन्दूक लेता तो कोई खाता बारूद की बरसातें तो तेज़ाब के छींटों से भरा ! दो घडी की दीवानगी बरसों का झमेला हुआ जो भी किया चंद सुकून परस्ती के लिए हुआ ! जाने ज़िन्दगी को जीता कहें या सेहता हुआ हर सांस जीने  के लिए मरता-जूंझता हुआ ! ज़िन्दगी भी अजीब सी किताब है 'फ़िज़ा ' हर साफा बहादुरी से मरता हुआ  लगे !! ~ फ़िज़ा

लिखकर ये चंद पंक्तियाँ एहसास जागे नए

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ज़िन्दगी से बात हुई कुछ दिन हुए काम में कुछ ज्यादा ही मसरूफ हुए दुनिया की परेशानी मानो अपने हुए ज़िन्दगी करीब होकर भी न रूबरू हुए खुद को सम्भालो तो औरों की सोचिये औरों का साथ कैसे दोगे जब अपने न हुए लिखकर ये चंद पंक्तियाँ एहसास जागे नए चलो ये एहसास ही ज़िन्दगी के पास लाए ! ~ फ़िज़ा