Posts

Showing posts from November, 2017

ज़िन्दगी भी कभी थमती नहीं है ...

Image
ज़िन्दगी की शाम जब होती है  तभी सुबह की तैयारी होती है  बात सही मानो तभी होती है  जब मुद्दा समझायी जाती है  हर एक बात की हद्द होती है  उसके बाद ज़िद्द ही होती है  वक़्त बे-वक़्त समझ होती है  तब तक बहुत देर हो जाती है  हर शाम के बाद सुबह होती है  सुबह से ज़िन्दगी शुरू होती है  समय का क्या, रूकती नहीं है  ज़िन्दगी भी कभी थमती नहीं है  चाँद भी अब मुस्कुराता नहीं है  जाने कितनी रातें आया नहीं है   पतझड़ के पत्तों की तरह होती है  नयी पंखुरी फिर निकल आती है  ~ फ़िज़ा 

मना करें कब ये तैय करें कैसे?

Image
धीरज की भी एक हद होती है  उसके कुछ कायदे-कानून होते हैं  किसी के रोंदने की चीज़ नहीं ये  मना करें कब ये तैय करें कैसे? जीना है ज़िंदादिली से ये सच है  क्यों जीना छोड़कर तनाव में रहें? तनावभरी ज़िन्दगी क्यों?जीने के लिए? जीने के लिए जीना ये तैय करें कब? प्रबंधक का शोषण होता नहीं बर्दाश्त बात को सजकता से लेना आदत सही   क्यों सहें और कैद करें डर को अंदर? तोड़ दूँ ये शृंखला? जीना है जब निडर! ~ फ़िज़ा 

मेरा बचपन खो गया कहीं!

Image
आज कहीं मेरा बचपन खो गया  एक बहुत बड़ा हिस्सा बचपन का  जिसे संवारने में मामा का प्यार था  शांत किन्तु गंभीर स्वाभाव के थे  मगर दिल के प्यारे और गुनी थे  उनकी दुलारी सबसे प्यारी भांजी  कोई और नहीं मगर मैं थी! जहाँ भी रहे हम पास या दूर  दिल में प्यार की गर्मी नहीं हुई कम  वक़्त मिले जब भी मिलने आये हम  फिर एक ऐसा भी वक़्त आया  अस्वस्थ की खबर ले गया हमें फिर  वहीं उनसे पुराने दिनों की यादों को  संग लिए दिल में मिलने चले थे  खुश था दिल वक़्त बे वक़्त ही सही  नज़रों के सामने थे तो सही मगर  ज़िन्दगी का भी एक ऐसा खेल है  जब सब कुछ अच्छा हो ऐसा लगे  तभी उसकी चाल बेहाल करे ! आज विदाई का दिन है ऐसा  कहा जब मुझ से सवेरे सवेरे  दिल एक पल के लिए हो गया  बोझल, मेरा बचपन खो गया कहीं! अब तो बस रहा गयीं यादें जो  सताएंगी हमेशा मुझे! ~ फ़िज़ा 

तुमसे बेहतर हम यहाँ ...!

Image
शुष्क हवा में विचरण करते  एक पंछी ने पुछा मुझ से  ऐसा सुनने में आया है कब से  बँधे हैं पैर खुले हैं हाथ तुम्हारे? लिखना-पढ़ना सब जानते हो  स्वतंत्र मन से कुछ नहीं करते! सच बोलने और लिखने से  मिलते हैं धमकियाँ क़त्ल के  गाय का मांस खाने से  गँवा बैठेंगे ज़िंदगियाँ ऐसे  सरकार जो भी करे और कहे  आज्ञा का पालन करते जाएं ! परिंदों ने हसंकर कहा  तुमसे बेहतर हम यहाँ  उड़ते इस मुक्त गगन में  आज़ादी से खुशगवार  तुम तो फिर भी बंधे हो  सामाजिक बेड़ियों तले ! ~ फ़िज़ा