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Showing posts from January, 2017

मुझको रोकने वालों ये बात कहनी थी तुमसे ...

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मुझको रोकने वालों ये बात कहनी थी तुमसे  बढ़ावा न दे सको तो न सही मज़ाक न बनो ! किसी की सबरी और बेसब्री तुम क्या जानो  कभी सबर कर सको औरों की तरह तो जानो ! झोली हर कोई भरता है अपनी गोदामों की तरह  धान्य सिर्फ गोदामों में रहे तो किस काम आये? अपने पालतू सब होते हैं चाहे ग़लत हो या सही  साथ भी तब तक देंगे जब तक गद्दी आपकी रही ! वक़्त नहीं लगता शीशे के महलों को ढेर होते - होते  कदम जब भी रखो तो आहिस्ता-आहिस्ता से रखिये ! मुझको रोकने वालों ये बात कहनी थी तुमसे वक़्त मेरा भी आएगा! हाँ, तब बात होती है तुमसे ;)  ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी है तो हैं ज़िंदा वर्ना क्या है?

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ज़िन्दगी से जब कुछ भी नहीं थी उम्मीद  तब हज़ारों मुश्किलें भी लगती थीं कमज़ोर  ज़िन्दगी को जीना आगया था तब उलझनों से  मौत या दुःख-दर्द का पता भी नहीं था कोई नाम  अकेले आना है और अकेले जाना है समझ आता था  पर आज जब ज़िन्दगी ने हाथ फैलाया है साथ का  जाने कितने उम्मीदों के साथ हौसलों का पर्दा पहनाया है  इन्हीं हौसलों को पाने की चाहत ने बना दिया सबको मुर्गा  एक लंबी होड़ है ज़िन्दगी की दौड़ में जहाँ हार भी है  जीत तो हमेशा नहीं न होती साथ, बेवफा  वहीं टूट जाती है उम्मीद की सांस  हौसलों के बादल गरजकर नहीं बरसते  बरसता है आँखों से पानी, जब याद आता है  ज़िन्दगी से मैं क्या-क्या न कर बैठा उम्मीद? सोच में निकाले वक़्त अब वो हर लम्हा  जो शायद कभी बिताये खुशियों में  क्योंकि ज़िन्दगी है तो हैं ज़िंदा वर्ना  क्या है? ~ फ़िज़ा