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Showing posts from May, 2016

एक दुखियारी बहुत बेचारी

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नारी के कई रूप हैं और एक ऐसा भी रूप है जिसे वो बखूबी निभाती है क्यूंकि नारी हमेशा अबला नहीं होती ! एक सत्य ये भी देखने मिलता है ! एक दुखियारी बहुत बेचारी  किसी काम की नहीं वो नारी  रहती हरदम तंग सुस्त व्यवहारी  हुकुम चलाये जैसे करे जमींदारी  पति कमाए वो उड़ाए रुपये भारी  ईंट -पत्थर से बने मकान को चाहे  आडंबर दुनिया की वो है राजकुमारी  उसके आगे करो तारीफें और किलकारी  उसे तुम लगोगे जान से भी प्यारी  वो खुश रहती हरदम है वो आडंबरी  रहना तुम दूर उससे वर्ना होगी बिमारी  तुम सोच न सको ऐसी दे वो गाली  एक दुखियारी बहुत बेचारी !!!! ~ फ़िज़ा 

हाय! कैसे कोई कहे ये है बरखा का खेल !!

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बारिशों का मौसम और वो मन की चंचलता  क्यों लगे मुझे जैसे पाठशाला की हो बुट्टी  या फिर दफ्तर से लेते हैं चलो छुट्ठी  सफर का एक माहौल सजाता है चित्तचोर  निकल पड़ो यूँही राह में दूर कहीं बहुत दूर  जहाँ न हम होने का हो ग़म, न तुम होने का  निकल पड़ो बरसात में भीगते हुए कुछ पल  संगीत को करने दो उसकी अठखेलियाँ  फिर तुम चाहे हो जाओ बावले दीवाने कहीं  भूल जाओ कोई है इस जहाँ में या उस जहाँ में  मदमस्त होकर मंद हो जाओ मूंदकर आँखें  प्रकृति के संग हो जाये वो संगम मोहब्बत का  आलिंगन हो ख्वाबों और हकीकत का  प्यार करो इस कदर के हर पत्ता हर कण कहे  मैं वारि जाऊँ बलिहारी जाऊँ इस दीवानेपन पर  जहाँ सिर्फ बारिश की बूँदें नज़र आये पर्दा बनके  बारिशों का मौसम और वो मन की चंचलता हाय! कैसे कोई कहे ये है बरखा का खेल !! ~ फ़िज़ा 

कुछ लिखते क्यों नहीं ...!

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साफ़ सुथरी स्लेट पर  वो देखते रहा यूँ जैसे  अभी कोई निकल आएगा  जो उसे जगाएगा  और कहेगा - क्या सोचता है दिन भर  कुछ लिखते क्यों नहीं  क्यों डूबे हुए ख्यालों को  देते नहीं कलम का सहारा  कुछ नहीं तो कोई पढ़नेवाला  ही बता दे कोई राय तुम्हें  क्या सोचता है दिन भर  लिख ही डालो अब वो सब  जो डुबाए रखता है तुम्हें  कुछ हमें भी कोशिश करने दो  क्या खोया क्या पाया है  इसका अनुमान गोते खाकर  डूबते संभलते ही समझा दो  मगर बेरंग न रखो इस स्लेट को  कुछ ज़रूर लिखो मन की रात   जो लगे सबको अपनी बात   दिखे किसी के अरमान और  लगे अपनी ही सौगात   एक पल जो न ख़याल है  न सवाल है, बस दरिया है  डूब जाना है ! ~ फ़िज़ा 

माँ का जीवन सदा यही है

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दुनिया बड़ी ज़ालिम है  यही कहा था माँ ने  संभलना हर कदम में  यही कहा हरदम माँ ने  कभी अकेले न जाना रस्ते में  कोई बेहला के न ले जाए  गर कोई ले भी गया प्यार से  अपने कदमों में खड़े रहना अपने दम से  ये एक माँ ही केह सकती है बेटी से  गर्व है, सबकुछ तो नहीं सुना माँ का  मगर कुछ बातों का किया पालन  आज हूँ मैं अपने कदमों का बनके सहारा  दे सकूं किसी और को भी सहारा  सर उठाकर जी भी सकूं अकेले  चाहे रहूं मैं नकारा  मेरी माँ थी बढ़ी कठोर बचपन में  शायद मुझे कठोर बनाने के लिए  दिल से रही वो मोम रही पिघलती  रेहती  सुबह-शाम फ़िक्र में  समझ न पायी उसकी ये बेचैनी  जब तक मैं न हुई माँ बनके सयानी  माँ का जीवन सदा यही है  मृत्यु तक बच्चों का सौरक्षण  यही है जीवन की कहानी  यही है जीवन की कहानी ! ~ फ़िज़ा 

उसे इतनी ख़ुशी मिली जहां में ..!

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उसे इतनी ख़ुशी मिली जहां में  एक नफरत भरी नज़र उसे ले डूबी  सौ खुशियों के जहां में एक दुःख  भला वो न जी सकी न ही मर सकी  बहुत सोचा सही या ग़लत मगर  शान्ति और सबुरी का विचार आया  उसने गिड़गिड़ाते ही सही साथ चाहा  बचे हुए दिन पश्चाताप में सही पर  एक दूसरे की नज़र में बिताएं मगर  शायद, ये ग़लत था उसकी सोच उसका चले जाना ही अच्छा है  भला जो सुख नहीं दे सकता किसीको  क्या हक़ है भला उसका रहना  और भी हैं जहां में जो प्यार के भूखे  शायद उन्ही की शरण में बिताए  बचे हुए दिन! ~ फ़िज़ा