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Showing posts from November, 2014

सब तो भाग रहे हैं दौड़ में....

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ज़िंदगी के सारे साधन हैं यहाँ मगर जीता कौन है यहाँ सब तो भाग रहे हैं दौड़ में किसका पीछा करते हैं ना जानते हुये इस होड़ में जाने कितनो को कुचल दिये वहीं दोस्ती भी तोड़-मरोड़ते हुये चले हैं अपनी धुंद में सोचकर खुदा अपनेको गिरता है जब ठोकर खाकर तब संभालता हुया मगर कौन है अब बचा हुया जो आसरा ही देदे उसे पछतावे का चेहरा लेकर कहाँ अब जायेगा टू मुर्झाये देख सब तुझे ही घूरते हैं अब हर तरह से  के अब तेरा क्या होगा प्यारे इस जहां से जब खुदा मानकर चल रहा था तब नज़र कोई नहीं आया तुझे अब किस मुंह से मांगेगा हाथ बढ़ाकर के देने बद्दुआ तो कयी आयेंगे मगर सच्चा दोस्त एक भी होता अगर तो शायद लेलेता तुझे अपने घर  ना पड इन जंजालों में तू सफर अभी चलना बहुत दूर है तुझे अगर जान ले हक़ीक़त को ज़रा करीब से मगर  के आना-जाना लगा रहेगा दुनिया में सेहर  क्यूं ना खुशी से सब्र से तो सबकी मदत से  छोड़ आ माया को किसी जंजाल में  साथ ले शांती का मन-मस्तिष्क में  जी भरपूर मगर ना नुकसान कर किसी का ~ फ़िज़ा

मैं खुश हूँ जहांवालों तुम्हारी दुआयें पाकर...

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खुश हूँ में आज ज़िंदा रेहाकर यहाँ याद आता है मुझे बचपन मेरा जहां पापा की लाड़ तो माँ की डांट कयी  पल जी लेना उस पल तब  जब माँ की ना और पापा की हां पर  सैकड़ों नमन नसमस्तक होकर उनको जिनकी वजह से हूँ मैं यहाँ आबाद  जीवन के इस मोड पर आकर जब  देखूँ उस पार जहां कभी सेहमी सी थी मैं घबराई इस दुनिया से  उसी ने दी मुझे होसला दिलेरी का  कर मुझे बुलंद इस जहां ने दिया प्यार शायद जो वो भी भूल गये हैं इस बात को  मगर जैसे माँ की हमेशा सीख थी मुझे  ना भूलो पिछलों को ना भूलो अपनो को  बढ़ो आगे जहाँ में ज़मीन पर पॉव रखकर  मैं खुश हूँ जहांवालों तुम्हारी  दुआयें पाकर ~ फ़िज़ा 

ए चाँद मेरे मुझे मिला भी तो वहीं जाते - जाते...

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तुझे देख मैं निकल पड़ी अपने रास्ते जिधर ले जाता चले वहीं हम आते  कभी पेड़ों के पीछे तो कभी बादल आ जाते ढूंडती हुई निकल पड़ी सवारी जाते-जाते देखा मेरी ज़िंदगी "रेडियो ज़िंदगी" के आते-आते मुझे मिला मेरा साजन  ज़िंदगी के रास्ते ए चाँद मेरे मुझे मिला भी तो वहीं जाते - जाते जहां शाम ज़िंदगी की करने निकले थे समा सजाते  ~ फ़िज़ा