ज़िंदगी कल गले मिली थी कुछ देर सेहर...!
ज़िंदगी कल गले मिली थी कुछ देर सेहर पेहले तो बस देखने-समझने में लग गयी देर फिर जब प्यार हुआ आँखों-आँखों में देर-सबेर तो देखा वक़्त हो चला था शाम पहुंचने मुंडेर मैने भी केहा दिया ज़िंदगी से रुक जा कुछ देर मानो या ना मानो लगा रुक ही जायेगी कुछ देर , मगर ढल ही गयी शाम और ज़िंदगी मिलने का वादा कर निकल गयी हाथ से यूं जैसे अभी मिलेंगे कुछ देर ज़रूर ! ~ फ़िज़ा