ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !
ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...
-
औरत को कौन जान पाया है? खुद औरत, औरत का न जान पायी हर किसी को ये एक देखने और छुने की वस्तु मात्र है तभी तो हर कोई उसके बाहरी ...
-
तेल अवीव शहर के एक छोटे से बाजार से गुज़रते हुए इस बेंच पर नज़र पड़ी दिल से भरे इस बेंच को देख ख़ुशी हुई तभी किसी ने कहा, - देखा है उस आदमी...
-
जाने किस हाल में होगा वो , जाने क्या होगा उसका आगे , वो खुद भी नहीं आया मर्ज़ी से, जब लाया तो क्यों ख्याल न रखा , वो आज लाचार है बेबस भी , प...