Thursday, April 01, 2021

मन की ख़ुशी

 


तन मन का सुख है मन से 

तन का सुख भी है मन से 

जब मन ही न रहे तो सुख कैसे?


तन को मिले सब सुख-समृद्धि 

मन को मगर न भाये एक पल भी 

जब मन ही न रहे तो सुख कैसे?


मन को मिले सब मन चाहा 

तन बेशक है अब मुरझाया 

मगर अब भी सुखी है वो काया !


तन से न तोल खुशियां कभी 

मन की ख़ुशी हो कितनी भारी 

रखती हमेशा है खुशियों की क्यारी !!


फ़िज़ा 

6 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-०४-२०२१) को ' खून में है गिरोह हो जाना ' (चर्चा अंक-४०२५) पर भी होगी।

आप भी सादर आमंत्रित है।

--
अनीता सैनी

जितेन्द्र माथुर said...

ठीक कहा आपने ।

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर सार्टकैर प्रशंसनीय रचना

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

सुख ! मन का मानसपुत्र

मन की वीणा said...

सटीक और सार्थक कथन।

Dawn said...

Aap sabhi ka bahut bahut shukriya protsahan aur sarahane ke liye
Abhar

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...