उसने कहा मैं तुम्हें चाँद तक ले जाऊँगा
हो सके तो अगले जनम तक पीछा करूँगा
उसकी एक धुन पे चलने की सज़ा ये थी
हर ताल पे ता-उम्र चलने की सज़ा मिली
साथ होने का असर यूँ तो देखिये हुज़ूर
हमेशा के लिए कैदी बना दिए गए
बंधी की हालत न पूछो यूँ हमसे
वो इसे मोहब्बत समझते रहे ऐसे
बीते जिस पर वही जाने हैं हाल
बांधकर भी कोई आज़ाद रहता है?
फ़िज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
Sunday, May 31, 2015
Monday, May 25, 2015
कुछ लोग यूँ आजकल मिलते हैं ...
कुछ लोग यूँ आजकल मिलते हैं
सिर्फ दिखाने के लिए जीते हैं
दिल की बात तो कुछ और है
मगर जताते तो कुछ और हैं
पहनावे का रंग अलग है
दिखाने के तेवर कुछ और हैं
जब हकीकत से हो जाये पहचान
देर न हो जाए कहीं मेरी जान !
कुछ लोग यूँ आजकल मिलते हैं
सिर्फ दिखाने के लिए जीते हैं !!
फ़िज़ा
Monday, May 11, 2015
न निकले बाहर न रहे भीतर सा
कुछ बात है दिल में एक गुम्बद सा
न निकले बाहर न रहे भीतर सा
सोचूं तो लगे कुछ भी नहीं परेशान सा
फिर भी गहरी सोच पर मजबूर ऐसा
कैसी असमंजस है ये विडम्बना सा
न निकले बाहर न रहे भीतर सा
खोने का न डर न कुछ पाने जैसा
सबकुछ लुटाने की हिम्मत भी दे ऐसा
कुछ बात है दिल में एक गुम्बद सा
न निकले बाहर न रहे भीतर सा
~ फ़िज़ा
Wednesday, May 06, 2015
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये एक जवाब बन जाता है !
कोई दूर से ही सही सहलाता है मुझे सुनता है
पल भर के लिए ही सही मेरा अपना लगता है
पास रहकर भी न जो जाने वो ये एहसास है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये भी एक सवाल है ?
पलछिन की ज़िन्दगी पलछिन का खेल सब है
सोचने में गुज़र जायेगा पल क्या खोया क्या पाया है
वक़्त कट जायेगा हल वही का वही होना है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये भी एक सवाल है ?
बरसों किसी की गलतियों के निशान ये है
गुज़रे ज़माने की परछाइयाँ लेके साथ है
आज जो है वो कल न होगा ये हकीकत है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये भी एक सवाल है ?
अपने वक़्त न लगते पराये हो जाना है
कोशिशें भी अक्सर असफल करती है
कल और आज का नज़ारा बदला सा है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये भी एक सवाल है ?
यही एक सोच, सिर्फ एक सोच न है
लागू करने में वक़्त कहाँ लगता है
हर संयम का साथ खो देता है
तब सवाल जवाब बन जाता है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये एक जवाब बन जाता है !
~ फ़िज़ा
पल भर के लिए ही सही मेरा अपना लगता है
पास रहकर भी न जो जाने वो ये एहसास है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये भी एक सवाल है ?
पलछिन की ज़िन्दगी पलछिन का खेल सब है
सोचने में गुज़र जायेगा पल क्या खोया क्या पाया है
वक़्त कट जायेगा हल वही का वही होना है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये भी एक सवाल है ?
बरसों किसी की गलतियों के निशान ये है
गुज़रे ज़माने की परछाइयाँ लेके साथ है
आज जो है वो कल न होगा ये हकीकत है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये भी एक सवाल है ?
अपने वक़्त न लगते पराये हो जाना है
कोशिशें भी अक्सर असफल करती है
कल और आज का नज़ारा बदला सा है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये भी एक सवाल है ?
यही एक सोच, सिर्फ एक सोच न है
लागू करने में वक़्त कहाँ लगता है
हर संयम का साथ खो देता है
तब सवाल जवाब बन जाता है
क्यों वक़्त ज़ाया करें ये एक जवाब बन जाता है !
~ फ़िज़ा
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Garmi
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